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कविता

इन्सानियत

हाँ देख रहे है हम |

यूक्रेन की बलिभूमि में,

वार की छाया में ,

न्याय को समाझभ्रष्ट किया गया |

जीवी मनुष्य अधिकार के तलाश में

जटिल बढ़ा हि की ओर !

 

मनिपूर की सुवन भुमि में ,

खुद मार रहे हें मनुष्यवासी

चाहत है , अपनो के हक के

न देंगे किसी ओर को तब तक ,

समादान ओर दोस्त का हक |

 

हाँ देखते , हम ,राष्ट्र की कठिन वक्त पर

जाने वो दोस्ती की मूल्य ,

देश भक्ती के ऊपर कुछ नहीं ,

जीवन सम समक्ष भलिदान करेगा ,   फिर ऐसे ही है

प्रिय उम्मन चाड़ी |

मनुष्य के लिए वो जिया !

अनंद मनुष्य प्रेम उनको

कड़ी गुणा वापस मिल गया |

 

हॉ ,देखते हे हम मुश्किल वक्त पर

दूसरे पर करते जो ढया

बनाते हे जो अच्छा रिश्ता

सच्चे मूल्यों को बढ़ाकर

नफरत की इस कठीन वार को ,

इन्सानियत से

जीत लेगा !

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